नफरत की आदत नहीं थी ,उनसे,...........
फिर भी चंद लम्हों तक नफ़रत करने की कोशिश की..........
नहीं कर सका नफ़रत मै उनसे,.............
क्यूंकि, इस नासूर सी ज़िन्दगी में एक वही तो थीं,
जिसने जीने की चाहत दी.............
नफ़रत की आदत नहीं थी , उनसे,.........
फिर भी.........
सोचा की दूर चला जाऊ उनसे,.........
फिर याद आई, दिल के आशियाने में एक वही तो थी ,
जिसने मोहब्बत दी........
नफरत की आदत नहीं थी, उनसे,.........
फिर भी..........
आईने के सामने खड़े होकर,......
सोचता रहा मै, की बस उनसे इतनी ही,
आशिकी की........
नफ़रत की आदत नहीं थी, उनसे,........
फिर भी..........
बंद कमरे में उनको,.........
कोशता रहा , उनकी बेवफाई पर, क्या,
मैंने उनसे वाफाई की??????????
नफ़रत की आदत नहीं थी उनसे,..............
फिर भी, चंद लम्हों तक नफ़रत करने की कोशिश की.......................
Saturday, May 15, 2010
Wednesday, May 12, 2010
Friday, May 29, 2009
ना जा
छोड़ चली जाती हो तुम,
आग लगा के जीवन वन में;
फिर कहती हो जलना मत,
क्या अंदाज तुम्हारा है;
तुमने पूछा नही, फिर भी उत्तर देता हूँ ;
बन कर साया साथ रहू, इसमे लगता छोटापन;
आएने के समूख मै aou ,इसमे लगता खोटापन;
बन लिबास तुझसे लग जाऊ, इसमे तो है चंचल चितवन;
बन कर तेरा अंतर्मन, इसमे सम्मान हमारा है।।
छोड़ चली जाती हो ..............................
धरती को लग जाए जब , भार हमारा भारी है;
ईश्वर बोले छोड़ दे, अब जीवन मरण गद्दारी है;
सूरज जलकर राख हो जाए ,अब धुप नही दे सकता मै;
अम्बर बोले हार गया मै , तारो की इस रैली से ;
फिर भी तेरे साथ रहूँगा;
पर वादा है तुमसे मेरा , तुमको ये एहसास ना होगा;
छोड़ चली जाती हो.................................
आग लगा के जीवन वन में;
फिर कहती हो जलना मत,
क्या अंदाज तुम्हारा है;
तुमने पूछा नही, फिर भी उत्तर देता हूँ ;
बन कर साया साथ रहू, इसमे लगता छोटापन;
आएने के समूख मै aou ,इसमे लगता खोटापन;
बन लिबास तुझसे लग जाऊ, इसमे तो है चंचल चितवन;
बन कर तेरा अंतर्मन, इसमे सम्मान हमारा है।।
छोड़ चली जाती हो ..............................
धरती को लग जाए जब , भार हमारा भारी है;
ईश्वर बोले छोड़ दे, अब जीवन मरण गद्दारी है;
सूरज जलकर राख हो जाए ,अब धुप नही दे सकता मै;
अम्बर बोले हार गया मै , तारो की इस रैली से ;
फिर भी तेरे साथ रहूँगा;
पर वादा है तुमसे मेरा , तुमको ये एहसास ना होगा;
छोड़ चली जाती हो.................................
Wednesday, December 3, 2008
kavita
अश्को से लिखी मैंने, दो लब्ज लकीरों की,
ये शेर नही मेरे, जलवे तुम्हारे है।
मांझी नही रुकता जब, तुफानो के डर से,
तो मई कैसे भूलू उनको,जो मेरे किनारे है।
कहते है ! मोहब्बत तो रेत का दरिया है,
अब डूबने वाला कैसे ,तिनके के सहारे हो।
उस पर लगाने की ,आश बड़ी जिससे,
वो मेरे अपने तो, हो गए पराये अब।
ये दर्द के नगमे ,मैं भेज रहा उनको,
कदमो में जिनके, कभी पलको को बिछाए था।
किश्मत जब पुकारे, तो पुरी होती हर ख्वाइश,
शायद गर्दिश में अभी, अपने तकदीर के तारे है।
क्या कोई करे कविता कलियों की अदावत पर,
क्या शेर लिखे कोई ,भौरों की अदाओ पर,
अपने जैसा बिगडा, जब कलम उठाता है,
हर भावः,ह्रदय के तब गजले बन जाती है।
हर भावः, ह्रदय के तब कविता बन जाती है।
ये शेर नही मेरे, जलवे तुम्हारे है।
मांझी नही रुकता जब, तुफानो के डर से,
तो मई कैसे भूलू उनको,जो मेरे किनारे है।
कहते है ! मोहब्बत तो रेत का दरिया है,
अब डूबने वाला कैसे ,तिनके के सहारे हो।
उस पर लगाने की ,आश बड़ी जिससे,
वो मेरे अपने तो, हो गए पराये अब।
ये दर्द के नगमे ,मैं भेज रहा उनको,
कदमो में जिनके, कभी पलको को बिछाए था।
किश्मत जब पुकारे, तो पुरी होती हर ख्वाइश,
शायद गर्दिश में अभी, अपने तकदीर के तारे है।
क्या कोई करे कविता कलियों की अदावत पर,
क्या शेर लिखे कोई ,भौरों की अदाओ पर,
अपने जैसा बिगडा, जब कलम उठाता है,
हर भावः,ह्रदय के तब गजले बन जाती है।
हर भावः, ह्रदय के तब कविता बन जाती है।
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