Friday, May 29, 2009

ना जा

छोड़ चली जाती हो तुम,
आग लगा के जीवन वन में;
फिर कहती हो जलना मत,
क्या अंदाज तुम्हारा है;
तुमने पूछा नही, फिर भी उत्तर देता हूँ ;
बन कर साया साथ रहू, इसमे लगता छोटापन;
आएने के समूख मै aou ,इसमे लगता खोटापन;
बन लिबास तुझसे लग जाऊ, इसमे तो है चंचल चितवन;
बन कर तेरा अंतर्मन, इसमे सम्मान हमारा है।।
छोड़ चली जाती हो ..............................
धरती को लग जाए जब , भार हमारा भारी है;
ईश्वर बोले छोड़ दे, अब जीवन मरण गद्दारी है;
सूरज जलकर राख हो जाए ,अब धुप नही दे सकता मै;
अम्बर बोले हार गया मै , तारो की इस रैली से ;
फिर भी तेरे साथ रहूँगा;
पर वादा है तुमसे मेरा , तुमको ये एहसास ना होगा;
छोड़ चली जाती हो.................................