अश्को से लिखी मैंने, दो लब्ज लकीरों की,
ये शेर नही मेरे, जलवे तुम्हारे है।
मांझी नही रुकता जब, तुफानो के डर से,
तो मई कैसे भूलू उनको,जो मेरे किनारे है।
कहते है ! मोहब्बत तो रेत का दरिया है,
अब डूबने वाला कैसे ,तिनके के सहारे हो।
उस पर लगाने की ,आश बड़ी जिससे,
वो मेरे अपने तो, हो गए पराये अब।
ये दर्द के नगमे ,मैं भेज रहा उनको,
कदमो में जिनके, कभी पलको को बिछाए था।
किश्मत जब पुकारे, तो पुरी होती हर ख्वाइश,
शायद गर्दिश में अभी, अपने तकदीर के तारे है।
क्या कोई करे कविता कलियों की अदावत पर,
क्या शेर लिखे कोई ,भौरों की अदाओ पर,
अपने जैसा बिगडा, जब कलम उठाता है,
हर भावः,ह्रदय के तब गजले बन जाती है।
हर भावः, ह्रदय के तब कविता बन जाती है।
Wednesday, December 3, 2008
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